हासिल-ए-ग़ज़ल शेर

माना के मुश्त-ए-ख़ाक से बढ़कर नही हूँ मै
लेकिन हवा के रहम-ओ-करम पर नहीं हूँ मैं

Thursday, June 6, 2013

Shayar--Fitrat Hoon Main...

Jigar Muradabadi
There are lots of Jigar's ghazals which leave you spellbound. Here is one such Ghazal,
great rendition by Vinod Sehgal and music by Jagjit Singh.



शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़र्माता हूँ मैं 
रूह बन कर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं 
(शायर-ए-फ़ितरत = poet of nature, here फ़िक्र = think)

आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं 
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ मैं 
(शै = thing)

जिस क़दर अफ़साना-ए-हस्ती को दोहराता हूँ मैं 
और भी बेग़ाना-ए-हस्ती हुआ जाता हूँ मैं 
(अफ़साना-ए-हस्ती = story of life, बेग़ाना-ए-हस्ती = neglect of life)

जब मकान-ओ-लामकाँ सब से गुज़र जाता हूँ मैं 
अल्लाह-अल्लाह तुझ को ख़ुद अपनी जगह पाता हूँ मैं 

हाय री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिये 
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं 
(तर्क-ए-मोहब्बत = reasons to leave love, breakup)

मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीयत देखना 
जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूँ मैं 

हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है 
अपने ही क़दमों की ख़ुद ही ठोकरें खाता हूँ मैं 

तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर 
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं 
(तक़ाज़ा = unnecessary request; bothering)

वाह रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़ 
गुनगुनाता रक़्स करता झूमता जाता हूँ मैं 
(शौक़-ए-शहादत = desire to achieve martyrdom; कू-ए-क़ातिल= beloved's lane; रक़्स = dance)

देखना उस इश्क़ की ये तुर्फ़ाकारी देखना 
वो जफ़ा करते हैं मुझ पर और शर्माता हूँ मैं 

एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ "ज़िगर" 
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
(तूफ़ान-ए-हवादिस = tons of calamities, storm of misfortunes)

I hope you enjoy this gem.


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