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आप को देख कर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया*
आते आते मेरा नाम सा रह गया
उसके होंठों पे कुछ कांपता रह गया
वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था की सच बोलता रह गया
आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया
- वसीम बरेलवी
*First sher from Aziz Qaizi(Qaisi)'s ग़ज़ल
आप को देख कर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया
उन की आँखों में कैसे छलकने लगा
मेरे होंठों पे जो माजरा रह गया
ऐसे बिछड़े सभी राह के मोड़ पर
आखरी हमसफ़र रास्ता रह गया
सोच कर आओ कू-ए-तमन्ना है ये
जानेमन जो यहाँ रह गया रह गया
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